8 मार्च आते ही नारी उसकी उपलब्धियों, उसकी समस्याओं तथा उसके समाज में स्थान की चर्चाओं, परिचर्चाओं सेमिनार, संगोष्ठियों तथा वक्तव्यों की बाढ़ सी आ जाती है। स्त्रीमुक्ति, स्त्री चेतना, स्त्री समथ्र्य तथा नारी सषक्तिकरण जैसे मुद्दों पर समाज के रहनुमा चितंक तथा सोषलमीडिया तथा परम्परावादी मीडिया पर बहस छिड जाती है। नारी के संघर्ष की यह शुरूआत से आज नारी को अबला नहीं कहा जा सकता था। तुलसीदास की ढोल गवांर, शूद्र, पषु , नारी, ये सब ताडना के अधिकारी या मैथिलीषरण गुप्त की पंक्ति ‘नारी तुम केवल श्रद्धा हो’ उसकी उपलब्धियों की कहानी तक चाहे वह आर्थिक क्षेत्र, समाजिक व राजनैतिक क्षेत्र हो, इस दिन दोहरायी जाती है। प्रष्न यह है कि इन सारी उपलब्यिों के बावजूद भी क्या नारी की स्थिति में परिवर्तन आया है? नारी की पहचान का यह संघर्ष नये-नये रूपों में लगातार सामने आ रहा है। बदलाव तो आ रहा है, इसमें कोई संदेह नहीं, पर बदलाव का क्षेत्र सीमित है। भारत में गांवों, कस्बों में नारी आज भी अपने व्यक्तित्व के विकास तथा अपनी स्वतंत्र पहचान के लिए जूझ रही है। आज भी घर-परिवार को चलाने, उसके लिए साधन उपलब्ध करवाने और समाज तथा अपनों से मुठभेड़ करती नारी अपने को महज जिदां रखने का सत्त संघर्ष करती नजर आती है। चाहे षिक्षा का प्रष्न हो या स्वास्थ्य का क्योंकि सफल तथा सषक्त व्यक्तित्व के लिए दोनों जरूरी है। आंकडे बताते हैं कि नारी इन दोनो मदों पर पुरुष से पीछे है। एक बड़े शहर के हुए सर्वेक्षण जो कि हाल ही में इंष्योरस कम्पनी द्वारा महिला दिवस के संदर्भ में करवाया गया, उसके अनुसार सब की चिंता करने वाली तथा सबके स्वास्थ्य का ध्यान रखने वाली स्त्री, अपने स्वास्थ्य के प्रति कितनी जागरूक है, वे क्या करती है, इसके रूख को स्पष्ट करता है। इसके अनुसार 10 प्रतिषत स्त्रियां कभी चैक-अप के लिए जाती ही नहीं 63 प्रतिषत तब तक कोई हैल्थ चैक-अप या टैस्ट नहीं करवाती जब तक वह बीमार न हो जाए 30 प्रतिषत ये मानती हैं कि हैल्थ चैक-अप बहुत मंहगे हैं और अनावष्यक भी हैं, 31 प्रतिषत ने यह कहा कि उनके पास इसके लिए समय ही नहीं है और 40 प्रतिषत यह मानती है कि स्वास्थ्य हैं, उन्हें इनकी जरूरत नहीं। केवल 36 प्रतिषत महिलाएं जो हैल्थ चैक-अप के लिए जाती हैं, वे केवल साल में एक बार ही जाती हैं। ये आंकडे़ उन महिलाओं की कहानी बता रहे है, जो आर्थिक दृष्टि से संपन्न तथा सामाजिक दृष्टि से संभ्रात मानी जाती हैं। नारी, जननी, बालिका, पोषिका, त्याग, तपस्या, सयंम, बलिदान की देवी को न अपने खाने-पीने की सुध, न सोने-जागनें की परवाह ‘मां’ के अतिरिक्त भी नारी का अपना व्यक्तित्व है। आज नारी जाग रही है, अपने अधिकारों के प्रति सजग है, अपनी स्वत्रंता में विष्वास करती है, आर्थिक रूप से आत्म-निर्भर हो रही है और नैतिक रूप से आजाद हो रही है, मानसिक तौर पर सफल बन रही है, दकियानूसी और रूढ़ियों को तोड़े, निरंतर आगे बढ़ रही है। जीवन में अनेक क्षेत्रों में उपलब्यिों के परचम लहराने के बाद भी आंचल में दुध और आंखों में पानी की स्थिति बनी हुइ्र्र है, पर बहुत बड़ी संख्या में स्त्रियां आज भी पालनाओें और लाचारियों का षिकार हैं। अन्याय और शोषण की जड़े समाज में इतने गहरे से धस्सी है कि स्त्री स्वंय भी उन्ही में जीवन की साथकर्ता समझने लगी है। स्त्री यानि आधी आबादी की चेतना उध्र्वगामी हो, उपलब्धियों के नये षिखरों पर अपनी विजय पताका फहराने उसकी संभावनाए वास्तकिता में परिवर्तत हो तथा समाज का समुचित तथा संतुलित विकास में उसका योगदान बढ़े, इस आषा के साथ महिला दिवस पर शुभकामनाएं। अंत में 8 मार्च ही महिला सम्मान दिवस या उसकी उपलब्यिों का उत्सव न बन कर रह जाए, हर दिन उसकी अस्मिता, उसकी गरिमा का अक्षुव्ण रखने का दिन होना चाहिए।
डा0 क.कली