कोई भी सरकार क्या करती है, यह इतना महत्व नहीं रखता, क्या करती प्रतीत होती है। यह ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। गोपाष्टमी के पुण्य अवसर पर हरियाणा सरकार ने गौवंश सरंक्षण गौ संवर्धन अधिनियम 2015 पारित किया है। वर्तमान सरकार ‘‘गाय‘‘ जोकि हिन्दू संस्कृति तथा आस्था का प्रतीक है। उसकी रक्षा के प्रति कटिबद्ध है। ऐसा परिलक्षित होता है। इसी प्रकार ‘गीता जंयती भी पूरे जोर-शोर से मनाने‘ का उपकरण किया जा रहा है। अखबारों में विज्ञापन धड़ा-धड़ जा रहे है। वास्तविकता में क्या हो रहा है। यह विषय चितंनीय है। सांस्कृतिक विरासत को संभालना तथा लोगों में उसके प्रति सजगता लाना सरकार का एक काम हो सकता है, पर मुख्य काम तो प्रदेश में कानून व्यवस्था बनाये रखना तथा संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों को सभी निशंक होकर भोग सके, ऐसी व्यवस्था करना है। कल्याणकारी सरकार अपनी जनता की महत्वपूर्ण आशाओं तथा आकांक्षाओं से मुख नहीं मोड़ सकती। आज युवा, जोकि जनसंख्या का सबसे बड़ा हिस्सा है अपने रोज़गार तथा बढ़ती कीमतों के स्तर से ज्यादा चिंतित है, उसके लिए रोजी रोटी का जुगाड़ तथा आटे-दाल का भाव महत्व रखता है। ‘‘गेंहू बनाम गुलाब‘‘ रोटी महत्वपूर्ण है या संस्कृति यह विवाद सदियों पुराना है। आर्थिक विकास का मुददा आज सबसे ज्यादा ज्वलंत है। प्रश्न संस्कृति के गौण होने का नहीं है प्रश्न साधनों का है। जब हमारे पास समय साधन तथा शक्ति सीमित है, तो चयन और मुश्किल हो जाते है। ‘‘पेट न पइया रोटियां ते सबे गला खोटिया‘‘ जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं उदातत्त आवश्यकताओं पर सदैव हावी रहती है। ‘‘सब का साथ सब का विकास‘‘ तथा तेजी से आर्थिक विकास और युवा वर्ग के लिए ज्यादा से ज्यादा रोजगार अवसर उपलब्ध करवाने के मुद्दे पर बी.जे.पी. सरकार हरियाणा मेें सत्ता में आई। पर सरकार पर अक्सर आरोप लगता है कि वह प्रत्यक्ष रूप से या परोक्ष रूप से आर.एस.एस के हितों का साधने में मशगूल है। अपनी सालगिरह के अवसर पर एक साल पूरा होने पर, करोड़ों के विज्ञापन देकर अपनी उपलब्धियों से जनता को अवगत कराया परन्तु आम जनता का मानना है कि करदाता के पैसे को निमर्मता से पानी की तरह बहाना क्या आर्थिक विकास का यह कोई नया तरीका है? स्वच्छता अभियान के लिए सरकार के पास पैसा नहीं, भारत सरकार ने इसके लिए 0.5 प्रतिशत सेवा कर पर लगाया है।जनता से धन निचोड़ने के लिए सरकार नित प्रति नये तरीके अपनाती रहती है, पर उनके हितों तथा आशाओं को कितना फलीभूत करने में मद्द करती है यह वो आर्थिक आकड़ों तथा जीवन स्तर के विभिन्न पहलूओं से देखा जा सकता है। पुराने समय में ‘‘गौ पालन‘‘ खेती के साथ मुख्य पेशा था, अतः लोगों को अपने पेशे से भावनात्मक तौर से जोड़ने के लिए ‘‘गौधन‘‘ तथा गौ माता का दर्जा दिया गया था। अब समय बदल गया है, बदलत समय के साथ प्रतीकों को भी बदला जाना चाहिये युवा वर्ग को प्रेरित करने तथा अपने रोज़गार व पेशे से जोड़ने जहां ‘‘काम ही पूजा‘ बन जाती है, जैसे कि गाय की सेवा को पूजा का दर्जा दिया गया आज इसे नये संदर्भ में समझने तथा नये सिरे से मूल्यांकित कर पुनः विचार की आवश्यकता है। नयी पीढ़ी पर पुरानी मान्यताओं और पुराने प्रतीकों को क्यों लादा जाए? इस संबध में सरकार और समाज को गंभीर तथा नये चिंतन की आवश्यकता हैै।
डॉ. क. कली