चंडीगढ़ - 15वी हरियाणा विधानसभा आम चुनाव के लिए प्रदेश की सत्तारूढ़ भाजपा द्वारा अपने 67 उम्मीदवारों की जारी पहली सूची में अम्बाला नगर निगम की मौजूदा मेयर शक्ति रानी शर्मा को पंचकूला जिले की कालका विधानसभा सीट से जबकि सोनीपत नगर निगम के वर्तमान मेयर निखिल मदान को सोनीपत (शहरी) विधानसभा सीट से पार्टी उम्मीदवार बनाया गया है.
इसी प्रकार रोहतक जिला परिषद की चेयरपर्सन मंजू हुड्डा को रोहतक जिले की गढ़ी-सांपला किलोई से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा के विरूद्ध भाजपा प्रत्याशी के रूप में उतारा गया है.
ज्ञात रहे कि शक्ति रानी शर्मा दिसम्बर,2020 में हरियाणा जनचेतना पार्टी - हजपा (वी) के टिकट और चुनाव-चिन्ह (गैस सिलेंडर) पर चुनाव लड़कर अम्बाला नगर निगम के मेयर पद पर प्रत्यक्ष (सीधी) निर्वाचित हुई थी एवं एक सप्ताह पूर्व 1 सितम्बर को ही वह भाजपा में शामिल हुई हैं. हालांकि रोचक बात यह है कि उनके पति एवं हजपा (वी) सुप्रीमो विनोद शर्मा ने इस पार्टी का भाजपा में विलय नहीं किया है. अत: एक प्रकार से कहा जा सकता है कि मेयर शक्ति रानी ने हजपा(वी) से भाजपा में अकेले ही दल-बदल किया है.
इसी प्रकार दिसम्बर,2020 में कांग्रेस के टिकट और चुनाव-चिन्ह पर चुनाव लड़कर सोनीपत नगर निगम के मेयर पद पर सीधे निर्वाचित हुए निखिल मदान दो महीने पूर्व जुलाई में दल-बदल कर भाजपा में शामिल हुए थे.
'इसी सबके बीच पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट और संवैधानिक मामलों के जानकार हेमंत कुमार (9416887788) ने बताया कि भारत के संविधान की दसवीं अनुसूची में जो दल बदल विरोधी कानून हैं, वह केवल सांसदों और विधायकों पर ही लागू होता है, शहरी स्थानीय निकाय (म्युनिसिपल ) संस्थानों जैसे नगर निगमों/परिषदों/ पालिकाओं के निर्वाचित सदस्यों (पार्षदों) और उनके पदाधिकारियों पर नहीं इसलिए न केवल सम्बंधित नगर निकाय के सदस्य बल्कि नगर निगम मेयर/सीनियर डिप्टी मेयर/डिप्टी मेयर आदि अपनी मूल पार्टी अर्थात जिसके टिकट पर वह निर्वाचित हुए है, तो छोड़कर किसी अन्य राजनीतिक पार्टी/दल में शामिल हो सकते है और इस प्रकार वह बेरोकटोक दल-बदल करने के लिए स्वतंत्र हैं.
शक्ति रानी शर्मा और निखिल मदान दोनों का क्रमश: अम्बाला और सोनीपत नगर निगम मेयर के तौर पर कार्यकाल जनवरी 2026 तक अर्थात करीब सवा वर्ष शेष हैं.
बहरहाल, हेमंत ने बताया कि प्रदेश विधानसभा का सदस्य अर्थात विधायक का चुनाव लड़ने के लिए अन्य योग्यताओ के साथ साथ हालांकि एक योग्यता यह भी होती है कि वह व्यक्ति केंद्र सरकार या राज्य सरकार के अधीन किसी लाभ के पद पर आसीन नहीं होना चाहिए जैसा कि देश के संविधान के अनुच्छेद 191 में उल्लेख किया गया है हालांकि प्रदेश विधानसभा द्वारा अधिनियमित कानून मार्फ़त कई सरकारी पदों को लाभ के पद से होने वाली अयोग्यता से बाहर निकालकर उन पदों पर आसीन पदाधिकारियों को राज्य विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए योग्य घोषित किया जा सकता है.
हेमंत ने बताया कि हरियाणा विधानसभा द्वारा वर्ष 1974 में बनाया गया हरियाणा राज्य विधानमंडल ( योग्यता का निवारण) कानून, 1974 में लाभ के पद की श्रेणी से छूट दिए गए पदों में हालांकि नगर निगम मेयर एवं जिला परिषद के चेयरपर्सन के पद का स्पष्ट उल्लेख तो नहीं किया गया है परन्तु इन दोनों पदों को तकनीकी रूप से प्रदेश सरकार के अधीन पद नहीं कहा जा सकता है क्योंकि इन पर आसीन होने वाले पदाधिकारी को प्रदेश सरकार द्वारा मनोनीत या नामित नहीं किया जाता है बल्कि यह अपने अपने निर्वाचन क्षेत्र से मतदाताओं द्वारा निर्वाचित होते हैं. इस प्रकार न तो अम्बाला मेयर शक्ति रानी शर्मा को, न सोनीपत मेयर निखिल मदान और न ही रोहतक जिला परिषद चेयरपर्सन मंजू हुड्डा को आगामी हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन भरने से पूर्व अपने अपने पदों से त्यागपत्र देने की आवश्यकता नहीं है.
इसी बीच हेमंत ने यह भी बताया कि हरियाणा नगर निगम कानून, 1994 की धारा 8ए के अंतर्गत प्रदेश के किसी नगर निगम के मेयर या सदस्य (जिन्हें आम भाषा में पार्षद भी कहते हैं हालांकि यह शब्द नगर निगम कानून में नहीं है) एक ही समय पर मेयर एवं विधायक एवं सांसद नहीं रह सकता है. अगर कोई व्यक्ति नगर निगम के मेयर या सांसद पद पर होते हुए विधानसभा या संसद के लिए निर्वाचित हो जाता है, तो विधायक या सांसद के तौर पर निर्वाचित घोषित होने की तारीख से वह नगर निगम का मेयर या सदस्य नहीं रहेगा. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो अगर शक्ति रानी शर्मा और निखिल मदान विधायक निर्वाचित होते हैं, तो उन्हें औपचारिक तौर पर मेयर पद से त्यागपत्र देने की कोई आवश्यकता नहीं होगी.
बहरहाल, चूँकि हरियाणा में वर्ष 2018 से नगर निगम मेयर का सम्बंधित निगम क्षेत्र के मतदाताओं द्वारा सीधा निर्वाचन किया जाता है, इसलिए अगर शक्ति रानी शर्मा और निखिल मदान के विधायक निर्वाचित होने के फलस्वरूप उन दोनों के रिक्त हुए मेयर पद की शेष अवधि अर्थात जनवरी, 2026 तक के के लिए हरियाणा राज्य निर्वाचन आयोग को दोनों नगर निगमों के मेयर पद के लिए उपचुनाव कराना पड़ सकती है क्योंकि वर्तमान में नगर निगम सदस्यों में से पूर्णकालिक मेयर चुनने का व्यवस्था नहीं है. अलबत्ता जब तक नियमित मेयर का चुनाव नहीं होता, तब तक दोनों नगर निगमों के सीनियर डिप्टी मेयर या उसकी अनुपस्थिति में डिप्टी मेयर नगर निगम सदन की बैठक बुला कर उनकी अध्यक्षता कर सकते हैं.