डॉ कमलेश कली
प्रकृति का गणित भी कुछ अलग तरह का है, बांटने से, दूसरों के साथ शेयर करने से घटता नहीं अपितु बढ़ता है।यह रहस्य जिसको समझ में आ जाता है, वह अपना सब कुछ बांटे बिना रह ही नहीं सकता। धर्म और परमार्थ में दान का बहुत महत्व बताया गया है,पर दान का अर्थ केवल वस्तु या स्थूल धन तक ही सीमित नहीं, अपितु जो कुछ भी हमारे पास है उसे दूसरों के साथ बांटने से है।जीसस का प्रसिद्ध वचन है जो देगा उसे और मिलेगा, जो बांटेंगा वह और पाने का हकदार बन जाता है। गुरु नानक देव जी ने किरत करो और वडं छको को धर्म का सार बताते हुए लंगर की प्रथा शुरू की।लंगर का मूलमंत्र है दिल से सेवा, इस प्रसंग में एक गरीब व्यक्ति उनके पास आया और उनसे कहने लगा कि वह तो बहुत गरीब है, किसी की क्या सेवा कर सकता है। गुरु जी ने सहज भाव से कहा कि तुम गरीब हो, क्योंकि तुमने देना नहीं सीखा।उस व्यक्ति ने पूछा कि मेरे पास देने को कुछ भी तो नहीं है तो उन्होंने समझाया कि तुम्हारा चेहरा मुस्कान बिखेर सकता है, तुम्हारा मुंह भगवान की महिमा कर सकता है, दूसरों को सुकून का अहसास दिलाने के लिए मीठे दो बोल बोल सकता है, तुम्हारे हाथ किसी के हाथ पकड़ कर उसकी सहायता कर सकते हैं और तुम कहते हो कि तुम्हारे पास देने के लिए कुछ नहीं है।सच है कि आत्मा की गरीबी सब से बड़ी गरीबी है, पाने का हक उसे है, जो देना जानते हैं।दान को पुण्य माना गया है जबकि लोभ को पाप का बाप कहा जाता है।जो जिस के पास है उसे बांट देने से ही बढ़ता है।नदी अपने जल को जब तक बांटती चलती है अर्थात बहती रहती है तो स्वच्छ और निर्मल रहती है, जहां नदी रुक जाती है,अटक जाती है, वहीं उसका अस्तित्व ही खत्म हो जाता है, पानी खड़ा रहने से सड़ने लगता है। इसलिए उदारता को महानता की विशेषता माना जाता है, बुद्ध ने उदारता को पहला अध्यात्मिक गुण माना है,उदार वही हो सकता है जिसे भरोसा है कि आज जो मेरे पास है उसे लुटा देने से, बांट देने से खुटने वाला नहीं है । इस जगत में अपना क्या है ,न कुछ साथ लाए हैं न ही लेकर जाना है, बांटना ही जीवन जीने का तरीका है, फिर जो है उसे बांटों, जरुरी नहीं कि धन या वस्तु ही बांटे, जो आसानी से दे सकते हो, जो तुम्हारे पास है उसे मुक्त हाथों से बांटों।