विकेश शर्मा
चंडीगढ़- आगामी कुछ दिनों में हरियाणा राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा प्रदेश की तीन नगर निगमों - अम्बाला, पंचकूला और सोनीपत एवं कुछ नगर परिषदों और नगर पालिकाओं के आम चुनाव की घोषणा होने वाली है. ऐसा अनुमान लगाया जा रहे है कि आगामी दिसंबर माह के अंत तक उक्त नगर निकाय संस्थाओ की चुनाव प्रक्रिया संपन्न करवाई जा सकती है. लिखने योग्य है कि दो वर्ष पूर्व दिसंबर, 2018 में हरियाणा निर्वाचन आयोग द्वारा प्रदेश के पांच ज़िलों – हिसार, करनाल,पानीपत, रोहतक एवं यमुनानगर की नगर निगमों और फतेहाबाद ज़िले में जाखल मंडी एवं कैथल ज़िले में पूंडरी नगर पालिकाओ के आम चुनाव करवाये गए थे जिसमें न केवल चुनावो में प्रयुक्त होने वाली इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनो में नोटा -NOTA (नन ऑफ़ द अबाव- अर्थात उपरोक्त में से कोई भी नहीं) के विकल्प का प्रावधान किया गया बल्कि इसी के साथ आयोग ने अपनी ओर से एक अलग आदेश जारी कर एक नयी व्यवस्था लागू कर यह निर्देश दिया कि चुनावों की मतगणना के दौरान NOTA को एक फिक्शनल इलेक्शन कैंडिडेट (कल्पित चुनावी प्रत्याशी) माना जाएगा एवं उसके पक्ष में पड़ी वोटों को रिकॉर्ड पर लिया जाएगा. 22 नवंबर 2018 को राज्य निर्वाचन आयुक्त डॉ. दलीप सिंह द्वारा जारी आदेशानुसार ऐसी व्यवस्था तत्काल प्रभाव से प्रदेश में सभी नगर निकाय आम चुनावो/उप चुनावों पर लागू होगी.
इस सम्बन्ध में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने जानकारी देते हुए बताया कि इस व्यवस्था में अगर किसी चुनावी क्षेत्र में (अर्थात मेयर के सम्बन्ध में पूरे नगर निगम क्षेत्र में एवं पार्षद के सम्बन्ध में सम्बंधित वार्ड में ) अगर NOTA के पक्ष में डाले गए वोट एवं किसी प्रत्याशी को डाले गए वोट सर्वाधिक एवं बराबर हैं, तो ऐसी स्थिति में उस प्रत्याशी को (न कि NOTA को) उस चुनावी क्षेत्र से विजयी घोषित कर दिया जाएगा. परन्तु अगर NOTA के पक्ष में डाले गए मत उस चुनावी क्षेत्र में चुनाव लड़ रहे सभी प्रत्याशियों को प्राप्त हुए व्यक्तिगत तौर पर मतों से अधिक है, तो इस परिस्थिति में किसी भी प्रत्याशी को उस वार्ड से निर्वाचित घोषित नहीं किया जाएगा एवं चुनाव अधिकारी द्वारा इस सम्बन्ध में आयोग को सूचित किया जाएगा एवं आयोग द्वारा उस चुनावी क्षेत्र में पुनर्मतदान करवाया जाएगा. उस पुनर्मतदान में ऐसे किसी प्रत्याशी को चुनाव नहीं लड़ने दिया जाएगा जिन्हे पहले हुए चुनावो कि मतगणना में NOTA को प्राप्त हुए मतों से कम मत प्राप्त हुए हैं.इसका सीधा अर्थ यह है कि पुनर्मतदान में सभी प्रत्याशी नए ही होंगे क्योंकि पूर्व प्रत्याशी अयोग्य हो जायेंगे. अब इस सबके बीच प्रश्न यह उठता है कि क्या हरियाणा विधान सभा द्वारा हरियाणा नगर निगम अधिनियम,1994 एवं हरियाणा म्युनिसिपल अधिनियम, 1973 में उपयुक्त संशोधन किये बगैर किसी चुनाव लड़ने वाले इच्छुक प्रत्याशी को मतदान में NOTA विकल्प से कम वोट प्राप्त करने की स्थिति में दोबारा चुनाव लड़ने से अयोग्य करार दिया जा सकता है ? इसके बाद यह प्रावधान किया गया है कि अगर पुनर्मतदान में भी NOTA के पक्ष में सर्वाधिक मत डाले जाते है, तो ऐसी स्थति में तीसरी बार मतदान नही करवाया जाएगा एवं NOTA के बाद सर्वाधिक मत हासिल करने वाले दूसरे नंबर के प्रत्याशी को विजयी घोषित कर दिया जाएगा. यह कानूनी तौर पर परखने लायक है कि क्या आयोग द्वारा अपनी संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए NOTA के सम्बन्ध में अपनी ओर से ही उक्त प्रावधान किया जा सकता है ?
हेमंत ने आगे बताया कि सुप्रीम कोर्ट के तीन जज बेंच द्वारा 27 सितम्बर 2013 को दिए गए फैसले – पीयूसीएल बनाम भारत सरकार में कोर्ट ने चुनावों में NOTA के विकल्प का प्रावधान डालने बाबत निर्देश तो दिए थे परन्तु उसमे ऐसा कुछ नही था जैसा हरियाणा चुनाव आयोग ने व्यवस्थां की है. लिखने योग्य है कि भारतीय चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट के उक्त निर्णय के बाद हुए लोक सभा एवं राज्य विधानसभाओ के आम चुनाव/उप-चुनाव में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनो में NOTA का विकल्प तो देता रहा है परन्तु इसे कभी कल्पित चुनावी प्रत्याशी नहीं माना जाता एवं इसके पक्ष में डाले गये मतों की संख्या के आधार पर कहीं भी पुनर्मतदान नही करवाया जाता. नवम्बर, 2018 में सुप्रीम कोर्ट के तीन जज बेंच ने एक जनहित याचिका को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था जिसमे कोर्ट से यह प्रार्थना की गयी थी कि अगर किसी चुनाव में NOTA को सर्वाधिक मत प्राप्त होते हैं तो उस चुनाव को रद्द कर उस क्षेत्र में दोबारा चुनाव करवाए जाएँ. भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायधीश जस्टिस दीपक मिश्रा ने इस पर टिपण्णी करते हुए कहा था कि अगर ऐसा व्यवस्था कर दी जाती है, तो जब तक उस चुनावी क्षेत्र में कोई प्रत्याशी NOTA से अधिक मत नहीं हासिल कर लेता, तब तक वहां पर चुनाव ही करवाए जाते रहेंगे जिससे समय एवं धन-राशि आदि की अनावश्यक हानि होगी जिसे सुप्रीम कोर्ट किसी भी सूरत में अनुमति नहीं दे सकती.