तरक्की के मायने
भारत आर्थिक उन्नति कर रहा है,
चमचमाती गाडि़यां, बड़े-बड़े मॉल्स,
गगनचुम्बी इमारतें, बड़े-बड़े होटल्स तथा रिजोर्ट्स
ये सब बयां करते हैं - तरक्की की कहानी।
पर पूछिये एक अकुशल श्रमिक से जो
ढो रहा ईंटें, उठा रहा तसले पर तसले,
छोड़ कर आया अपने गांव को,
उसके लिए आधुनिक भारत की तस्वीर कैसी है?
उतनी ही धूसर जितनी धूसर उसकी पहनी हुई कमीज।
पूछिये उस रिक्शा चलाने वाले से,
सामान ढोने वाले से, जो तेज रफ्तार के वाहनों के बीच
अपनी जान को जोखिम में डाल,
दिन-रात एक कर रहा- क्या मायने है इस तरक्की के उसके लिए
न उसकी आर्थिक सुरक्षा न उसकी सामाजिक सुरक्षा
बीमार पड़ गया तो दो जून का खाना मुश्किल।
पूछिये उस काम वाली बाई से,
सुबह बिना कुछ खाये, करे साफ बर्तन उनके, जो खाये और अघाये हैं
बारिश या मौसम खराब, तीज त्यौहार, उसको कोई छुटटी का हक नहीं,
क्या मायने हैं आर्थिक स्वतन्त्रता के उसके लिए?
उतनी ही अर्थहीन जितना अर्थहीन उन सब का जीवन,
जो अकुशल, अनपढ़, पूंजीहीन सर्वहारा जो भी कहो-
तरक्की के मायने केवल उनके लिए ही है, जिनके पास साधन है
तरक्की बेकाम, बेकार, निरर्थक, अर्थहीन उनके लिए, जिनके पास साधन नहीं।
(डॉ0 क0 ‘कली’)