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Haryana

राज्य में डीएपी की कोई कमी नहीं है, विपक्ष अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए फैला रहे डीएपी की कमी की अफवाहे – मुख्यमंत्री

November 14, 2024 09:39 PM

हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री नायब सिंह सैनी ने कहा कि राज्य में डीएपी की कोई  कमी नहीं है। विपक्ष के नेता अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए डीएपी की कमी की अफवाहे फैला रहे हैं। सच यह है कि इस साल राज्य सरकार ने पिछले साल से भी अधिक डीएपी किसानों को दिलवाई है तथा जितनी भी और मांग किसी भी किसान की होगी, उसे जरूर समय रहते पूरा किया जाएगा। 

 

मुख्यमंत्री आज यहाँ हरियाणा विधानसभा सत्र के दौरान राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा के उपरांत अपना जवाब दे रहे थे। 

 

श्री नायब सिंह सैनी ने कहा कि पिछले वर्ष 13 नवंबर तक प्रदेश में 1 लाख 62 हजार मीट्रिक टन डीएपी की खपत हुई थी। इस वर्ष 13 नवंबर तक 1 लाख 77 हजार मीट्रिक टन की खपत हो चुकी है। अर्थात 15 हजार मीट्रिक टन ज्यादा डीएपी सरकार ने किसानों को दी है। इतना ही नहीं, 15 नवम्बर तक जिलों में 14 हजार 750 मीट्रिक टन डी.ए.पी. और प्राप्त हो जाएगी।

 

उन्होंने विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा कि प्रदेश में डीएपी की मांग कांग्रेस सरकार में लगातार बढ़ती रही, लेकिन उन्होंने इसको पूरा करने पर कभी ध्यान नहीं दिया। इनके कार्यकाल में ऐसा कोई वर्ष नहीं था जब अन्नदाता को खाद की कमी का सामना न करना पड़ा हो। वर्ष 2005, 2006, 2007, 2008, 2009, 2010, 2011, 2012, 2013 किसी भी वर्ष में इसी विधानसभा की कार्यवाही निकलवाकर देख लीजिए, खाद की कमी का मुद्दा यहां गूंजता रहा है। हर साल बिजाई के मौके पर डीएपी उपलब्ध नहीं होता था और किसानों को ब्लैक में खाद खरीदनी पड़ती थी।

 

मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारी सरकार ने पिछले 10 वर्षों में लगातार डीएपी के विषय का ध्यान रखा है और हर साल किसानों को पर्याप्त डीएपी उपलब्ध करवाया है। सरकार ने डीएपी की कालाबाजारी करने वाले लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की है। इस वर्ष प्रदेश में 185 छापे मारे गए हैं, 105 कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं, 21 लाइसेंस निलंबित किए गए हैं, 8 लाइसेंस रद्द किए गए हैं, 7 एफआईआर दर्ज की गई हैं और 16 मामलों में बिक्री रोक दी गई है। 

 

मुख्यमंत्री ने कहा कि पिछले वर्ष 13 नवंबर तक प्रदेश में 1 लाख 62 हजार मीट्रिक टन डीएपी की खपत हुई थी और इस वर्ष 13 नवंबर तक 1 लाख 77 हजार मीट्रिक टन की खपत हो चुकी है। उन्होंने सदस्य द्वारा झज्जर में उठाए गए डीएपी के आंकड़ों का जवाब देते हुए कहा कि पिछले वर्ष 1 अक्तूबर से 12 नवम्बर तक 4,455 मीट्रिक टन डी.ए.पी. किसानों द्वारा खरीदी गई थी। इस वर्ष इसी अवधि में अब तक 5,892 मीट्रिक टन डी.ए.पी. किसानों द्वारा खरीदी जा चुकी है। पिछले वर्ष से 32 प्रतिशत अधिक डीएपी झज्जर जिला के किसानों को दी है। इस समय भी झज्जर जिले में 555 मीट्रिक टन डी.ए.पी. का स्टॉक उपलब्ध है। 15 नवम्बर को जिला झज्जर में 1140 मीट्रिक टन डी.ए.पी. का एक और रैक भी पहुंच जाएगा।

 

उन्होंने कहा कि  नारनौंद में गत 1 अक्तूबर से 13 नवम्बर तक 2090 मीट्रिक टन डी.ए.पी. किसानों द्वारा खरीदी गई है। इसके अलावा और भी जो मांग होगी, उसे भी तुरंत पूरा किया जाएगा ।

 

विभिन्न जिलों में 4,04,742 मीट्रिक टन यूरिया उपलब्ध

 

मुख्यमंत्री ने कहा कि रबी सीजन 2024-25 के दौरान हरियाणा को कुल 11,20,000 मीट्रिक टन यूरिया आबंटित किया गया है। अभी तक 6,57,731 मीट्रिक टन यूरिया राज्य में प्राप्त हो चुका है। राज्य के विभिन्न जिलों में 4,04,742 मीट्रिक टन यूरिया अभी भी उपलब्ध है। हरियाणा राज्य में यूरिया की कोई कमी नहीं है।

 

श्री नायब सिंह सैनी ने कहा कि वर्ष 2005 से 2014 तक किसानों को फसल खराबे की कुल 1158 करोड़ रुपये की राशि दी गई, जबकि वर्तमान राज्य सरकार ने  वर्ष 2014 से लेकर अब तक   14,860.29 करोड़ रुपये की राशि क्षतिपूर्ति व नुकसान की भरपाई के रूप में किसानों को डीबीटी के माध्यम से उनके खातों में दी है। साथ ही, उन्होंने सदस्यों से अनुरोध किया कि वे प्राकृतिक खेती योजना के प्रति किसानों को प्रेरित करें। अभी तक 23,776 किसानों ने विभाग के पोर्टल पर पंजीकरण करवाया है। 9910 किसान सत्यापित भी हो चुके है। इससे डी.ए.पी और यूरिया की मांग कम होती है।

*जींद में किसान की मृत्यु का  मामला डी.ए.पी. खाद से नहीं  जुड़ा हुआ*

मुख्यमंत्री ने जींद में किसान की मृत्यु के मामले पर कहा कि बड़े दुःख की बात है कि श्री रामभगत ने गत 6 नवम्बर को कीटनाशक दवाई पीकर आत्महत्या कर ली। परंतु यह और भी दुख की बात है कि कुछ लोग इस घटना को राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि राजस्व रिकार्ड अनुसार मृतक श्री रामभगत के नाम कोई जमीन गांव भीखेवाला में नही है। उनके  पिता श्री किदार सिंह के नाम गाँव भीखेवला में 3 कनाल कृषि योग्य भूमि है और 125 गज गैर मुमकिन जमीन है। श्री रामभगत ने मेरी फसल मेरा ब्यौरा पोर्टल पर भी पंजीकरण नहीं करवाया था। जहां तक डी.ए.पी. की उपलब्धता की बात है भीखेवाला गाँव दनौदा पैक्स के अन्तर्गत आता है और दनौदा पैक्स में गत 1 से 6 नवम्बर तक प्रतिदिन कम से कम 1200 बैग डी.ए.पी. के उपलब्ध थे।

 

मुख्यमंत्री ने कहा कि जिस दिन श्री रामभगत ने आत्महत्या की उस दिन भी दनौदा पैक्स में 1224 बैग डी.ए.पी. उपलब्ध थी और उस दिन वहां 600 से ज्यादा बैग डी.ए.पी. की बिक्री भी हुई है। इस मामले में 7 नवम्बर को पुलिस स्टेशन, उकलाना में दर्ज एफआईआर में उसके मामा श्री सतबीर सिंह, गावं कापड़ो, जिला हिसार ने स्पष्ट कहा है कि श्री रामभगत कई दिनों से मानसिक रुप से परेशान थे।  इसलिए यह मामला डी.ए.पी.  खाद से जुड़ा नहीं है। दुःख की बात है कि कुछ लोग किसान की मृत्यु पर दुखी न होकर उसका राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश कर रहे हैं।

 

किसान हित राज्य सरकार के लिए सर्वोपरि

 

मुख्यमंत्री ने कहा कि किसान हित हमारे लिए सर्वोपरि हैं। पिछले 10 सालों में सरकार बीज से लेकर बाजार तक किसानों के साथ खड़ी रही है। हमने अपने संकल्प-पत्र में उन सभी 24 फसलों के दाने-दाने की खरीद का संकल्प लिया था, जिनकी एम.एस.पी. तय की जाती है। राज्य सरकार चालू खरीफ सीजन में धान व बाजरे के हर दाने की खरीद एम.एस.पी. पर कर रही है।

 

उन्होंने कहा कि सरकार ने अभी तक मंडियों में आये लगभग 52 लाख मीट्रिक टन धान में से 51 लाख 40 हजार मीट्रिक टन धान की खरीद कर ली है। शेष बचे धान की खरीद भी 15 नवम्बर तक कर ली जाएगी। इसी प्रकार, मंडियों में अभी तक 4 लाख 76 हजार मीट्रिक टन बाजरे की आवक हुई है। इसमें से 4 लाख 67 हजार मीट्रिक टन बाजरा एम.एस.पी. पर खरीदा जा चुका है। इसके अलावा , मंडियों में मूंग की आवक भी शुरू हो गई है। अब तक 1033 टन मूंग आया है। इसमें से 580 टन मूंग की खरीद की जा चुकी है। हमने किसानों की फसल खरीद के 13 हजार 500 करोड़ रुपये अभी तक किसानों के बैंक खातों में डी.बी.टी. के माध्यम से डाल दिये हैं। उन्होंने कहा कि फसल खरीद में आढ़तियों की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए राज्य सरकार ने उनके हितों का भी ध्यान रखा है। सरकार ने आढ़तिया कमीशन 46 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 55 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया है।  

 

*पराली जलाने की घटनाओं में इस वर्ष 45 प्रतिशत की कमी आई* 


मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश में 8 नवम्बर तक कुल 906 जगह पराली जलाने की घटनाएं हुई हैं। इनमें से 22 घटनाएं आकस्मिक कारणों से हुई हैं। पिछले वर्ष इस अवधि में 1649 पराली जलाने की घटनाएं हुई थीं। इस प्रकार इन घटनाओं में इस वर्ष 45 प्रतिशत की कमी आई है। इस बात की सराहना माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी की है। अपनी जिम्मेदारी का सही ढंग से निर्वाह नहीं करने वाले नोडल अधिकारियों के विरुद्ध भी राज्य सरकार ने सख्त कार्रवाई की है। सरकार ने ऐसे 26 अधिकारियों व कर्मचारियों को निलंबित किया है। लगभग 250 अधिकारियों व कर्मचारियों को कारण बताओ नोटिस देकर उनसे जवाब भी मांगा है। प्रदेश में पहली बार ऐसा हुआ है कि अधिकारियों को भी प्रदूषण फैलाने के प्रति जवाबदेह माना गया है। 


उन्होंने कहा कि इस वर्ष प्रदेश में लगभग 38 लाख 87 हजार एकड़ क्षेत्र में धान लगाया गया था। पराली के प्रबंधन के लिए 22 लाख 65 हजार मीट्रिक टन पराली को चारे के रूप में उपयोग करने की योजना बनाई। इसके अलावा, खेतों में ही 33 लाख मीट्रिक टन पराली का प्रबंधन किया जा रहा है तथा 25 लाख 39 हजार मीट्रिक टन पराली का प्रयोग उद्योगों आदि में किया जा रहा है।  

 

फसल अवशेष प्रबंधन योजना के तहत वर्ष 2024-25 में 268 करोड़ 18 लाख रुपये की राशि की वार्षिक कार्य योजना मंजूर

 

श्री नायब सिंह सैनी ने कहा कि वर्ष 2023-24 में परानी न जलाने के लिए 1000 रुपये प्रति एकड़ की दर से 120 करोड़ रुपये की राशि एक लाख 10 हजार किसानों को दी गई। इस वर्ष 11 लाख 21 हजार एकड़ भूमि का किसानों ने अब तक पंजीकरण किया है। पंजीकरण के लिए पोर्टल 30 नवम्बर तक खुला है। दिसम्बर के पहले सप्ताह में सभी किसानों को 1000 रुपये प्रति एकड़ की दर से राशि का भुगतान कर दिया जाएगा। पराली सहित अन्य फसलों के अवशेषों के उपयोग के लिए फसल अवशेष प्रबंधन योजना के तहत वर्ष 2024-25 में 268 करोड़ 18 लाख रुपये की राशि की वार्षिक कार्य योजना के लिए मंजूर की गई है। इसमें 161 करोड़ रुपये केंद्र सरकार तथा 107 करोड़ रुपये की व्यवस्था राज्य सरकार ने की है।

 

उन्होंने कहा कि पराली प्रबंधन के लिए राज्य में 8 हजार 117 सुपरसीडर और 1727 गांठ बनाने वाली इकाइयां प्रदान की गई हैं। वर्ष 2018-19 से अब तक 1 लाख 882 मशीनें किसानों को सब्सिडी पर दी जा चुकी हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में फसल अवशेष जलाने से उत्पन्न प्रदूषण को रोकने के लिए वर्ष 2018 से अब तक प्रदेश में 6,794 कस्टम हायरिंग सेंटर स्थापित किये गए हैं। उपकरणों पर कस्टम हायरिंग सेन्टर को 50 प्रतिशत तथा व्यक्तिगत किसानों को 80 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है। राज्य के किसानों को अब तक 721 करोड़ रुपये सब्सिडी के रूप में प्रदान किये जा चुके हैं।

 

उन्होंने कहा कि उद्योगों को पराली की निर्बाध आपूर्ति करने के लिए सप्लाई चेन हेतु 25 करोड़ रुपये की राशि का प्रावधान किया गया है। अब तक उद्योगों से 110 आवेदन प्राप्त हो चुके हैं। इसके अलावा, राज्य सरकार ने धान की जगह दूसरी फसलों की खेती को प्रोत्साहन देकर पराली की मात्रा भी कम की है। इसके लिए मेरा पानी-मेरी विरासत योजना चलाई जा रही है और इस योजना की सफलता के परिणामस्वरूप प्रदेश में धान के रकबे में लगभग 2 लाख एकड़ की कमी आई है। इस योजना के तहत धान क्षेत्र में अन्य फसलें बोने पर 7,000 रुपये प्रति एकड़ की दर से अनुदान दिया जाता है। चालू वित्त वर्ष में 33 हजार 712 किसानों ने 66 हजार 181 एकड़ भूमि का पंजीकरण फसल विविधिकरण के लिए करवाया है। इसके अलावा, गौशालाओं में पराली की गठरों की ढुलाई के लिए 500 रुपये प्रति एकड़ दिए जाते हैं। एक गौशाला को अधिकतम 15 हजार रुपये की राशि दी जाती है। उन्होंने कहा कि पराली की खरीद हेतु 2500 रुपये प्रति टन की दर निर्धारित की गई है। इसमें गांठ बनाने से लेकर परिवहन तक का खर्च शामिल है। 20 प्रतिशत से कम नमी वाली पराली की खरीद 500 रुपये प्रति टन की दर से अतिरिक्त भुगतान का प्रावधान भी किया गया है।

 

उन्होंने कहा कि  खेतों में पराली जलाने की समस्या से निपटने के लिए राज्य सरकार ने कुरुक्षेत्र, कैथल, फतेहाबाद एवं जींद में बायोमास परियोजनाएं स्थापित की हैं, जिनसे 30 मेगावाट बिजली पैदा हो रही है। पराली का उपयोग जैव ईंधन में भी किया जा रहा है। इसे बढ़ावा देने के लिए पानीपत रिफाइनरी में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 10 अगस्त, 2022 को 2जी इथेनॉल प्लांट का लोकार्पण किया था। उन्होंने कहा की सदस्य पराली पर राजनीति न करें। हर सदस्य अपने इलाके में किसानों को समझाएं कि वे सरकारी योजनाओं का लाभ उठाये और पराली न जलाएं।

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