प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी दशहरा के पावन पर्व पर श्री रामलीला कमेटी के कलाकारों द्वारा वीरवार की रात्रि को रावण-अंगद संवाद एवं लक्ष्मण मूर्छा की लीला का बेहतरीन मंचन किया गया। प्रभू श्रीराम जी की लीलाओं के मंचन को देखने के लिए जबरदस्त भीड उमड रही है।
प्रभू श्रीराम की सोच थी कि युद्ध ना हो और बातचीत से ही रावण से मामला निपट जाए। युद्ध हुआ तो लाखों निरअपराधों की जान जाएगी। इसीलिए वे रावण को समझाने का एक और मौका देते हैं और किशकिंधा के युवराज अंगद को अपना संदेशवाहक बनाकर लंका में भेजते हैं ताकि वह रावण को अ‘छी तरह से समझा सके। उस समय के महान इंजीनीयरों नल एवं नील ने समुुंद्र में पत्थरों से बेहतरीन पुल का निर्माण किया। ताकि इस पुल के माध्यम से प्रभू श्रीराम अपनी सेना के साथ आसानी से लंका पर चढाई कर सकें।
लंका पहुंचने के बाद अंगद को आदर सहित रावण के दरबार में ले जाया गया। अंगद ने लंकेश को काफी समझाया के वह प्रभू श्रीराम जी के चरणों में जाकर गिर जाए और अपने अपराधों की क्षमा मांग ले। प्रभू श्रीराम बडे ही सरल ह्दय हैं और वे उसके सारे अपराधों को माफ कर देंगें। लेकिन रावण नहीं मानता है। अंगद ने रावण से कहा कि वह प्रभू श्रीराम जी की सेना का सबसे दुर्बल इंसान है। और वह अपनी ताकत का छोटा से नमूना दिखाना चाहता है। अंगद ने रावण से कहा कि वह अपना पैर जमीन पर टिका रहा है यदि उसका कोई भी योद्धा उसके पैर को जमीन से उठा देगा तो प्रभू श्रीराम जी की हार और रावण की जीत हो जाएगी। रावण ने अंगद की शर्त को मंजूर कर लिया।
रावण का एक भी योद्धा अंगद के पैर को जमीन से उठाना तो दूर की बात है पैर को हिला तक नहीं पाया। अंत में रावण ने अंगद के पैर को जमीन से उठाना चाहा तो अंगद अपने पैर को हटा लेता है और कहता है कि यदि तूझे पैर ही पकडने हैं तो प्रभू श्रीराम जी के पैर पकड वो तेरे सारे अपराध माफ कर देंगें। यहां से अंगद युद्ध का ऐलान करता है।
प्रभू श्रीराम जी के खेमे से लक्ष्मण जी को युद्ध की कमान सौंपी जाती है और रावण ने अपनी तरफ से अपने सबसे बलवान पुत्र मेघनाद को युद्ध की कमान सौंपी। दोनों पक्षों में जबरदस्त युद्ध होता है। मेघनाद जब लक्ष्मण जी पर विजय नहीं पा सका तो उसने ब्रह्मशक्ति का वार लक्ष्मण जी पर किया। ब्रह्मशक्ति का लक्ष्मण जी ने आदर किया और इसके लगने से वे मूर्छित हो जाते हैं। अपने छोटे भाई के मूर्छित होने पर प्रभू श्रीराम विलाप करते हैं जिसको देखकर दर्शकगण भाव विभोर हो जाते हैं। रामादल में मायूसी छा जाती है।
विभिषण ने श्रीराम को बताया कि लक्ष्मण जी का उपचार लंका का सुषेण वैध कर सकता है। प्रभू श्रीराम ने हनुमान जी को लंका भेजा और हनुमान जी लंका से सुषेण वैध को ले आते हैं। सुषेण वैध ने लक्ष्मण जी को देखकर कहा कि विंध्याचल पर्वत से संजीवन बूटी को सूर्य निकलने से पूर्व लाना होगा। तभी लक्ष्मण जी के प्राण बचाए जा सकते हैं।
हनुमान जी विंध्याचल पर्वत पर पहुंचकर संजीवनी बूटी को पहचान नहीं सके और वे पूरा पर्वत उठा लाते हैं। भरत जी आकाश में हनुमान की को देखकर समझते हैं कि कोई दैत्य जा रहा है। वे बाण चलाते हैं। बाण लगते से हनुमान जी जमीन पर गिरते हैं और हे राम कहते हैं। भरत ने प्रभू श्रीराम का नाम सुना तो वे चौंक गए। हनुमान जी ने उनको सारा वृतांत बताया तो भरत जी ने हनुमान जी को अपनी कमान पर बैठाकर प्रभू श्रीराम जी के पास भेजा। संजीवन बूटी आने पर सुषेण वैध ने लक्ष्मण जी को दवाई पिलाई जिससे लक्ष्मण जी ठीक हुए और रामादल में खुशी हुई। प्रभू श्रीराम एवं लक्ष्मण गले मिलते हैं।
प्रभू श्रीराम की भूमिका अश्विनी शर्मा, लक्ष्मण टोनी सोनी, हनुमान जी पपन अग्रवाल, विभीषण दलीप , अंगद लखपत कौशिक, रावण लाला सिकरवाल, मेघनाथ अरुण सेन, मंत्री राहुल जोशी, प्रकाश प्रजापति ने अभीनीत किया।
जब प्रभू श्रीराम ने सुषेण वैद्य से कहा मेरा भाई मर जाता है तो मर जाने दो अपना धर्म मत बिगाडो:-
लक्ष्मण जी के मूर्छित होने पर हनुमान ही लंका से सुषेण वैद्य को ले आते हैं। प्रभू श्रीराम ने सुषेण वैद्य से अपने अनुज लक्ष्मण का उपचार करने के लिए कहा । लेकिन इस पर सुषेण वैध कहते हैं कि वह लंका का वैद्य है और ऐसे में वह अपने विरोधी दल के मरीज का उपचार कैसे कर सकता है। सुषेण वैध कहते हैं कि लक्ष्मण जी का उपचार करने के लिए उनका धर्म मनाही करता है। इस पर प्रभू श्रीराम ने सुषेण वैद्य से कहा कि यदि मेरा भाई मरता है तो आप इसे मर जाने दें लेकिन अपने धर्म को ना बिगाडे। अपने धर्म पर बने रहें। प्रभू श्रीराम जी की इस महानजा और धर्म का पाठ पढाने पर सुषेण वैद्य उनसे खुश हो जाता है और लक्ष्मण जी का उपचार करने के लिए तैयार हो जाता है।