दीपावली का त्यौहार, उपहारों का त्यौहार, प्रकाश का त्यौहार आज नये रुप में ’’ बाजार के त्यौहार’’ मे रुपांतरित हो गया है । जीवन के हर क्षेत्र में आर्थिक क्रियाएं ही प्रधान है अर्थात बाजार व्यवस्था का वर्चस्व देखा जा सकता है । तमसो मां ज्योतिर्गम्य तथा उजास का यह त्यौहार कैसे विधि विधान परम्परा, रीतिरिवाजों से मनाया जाता था, आज देखने में नहीं मिलता । परस्पर स्नेह व प्यार के साथ जो छोटे-छोटे उपहार एक दूसरे को दिये लिये जाते थे, आज व्यापार का रुप ले चुके हैं तथा दिवाली पर नेटवर्किंग, सम्पर्क बनाने, स्वार्थसिद्धि के लिए उपहार लिये दिये जा रहे हैं । बाजार अपनी पूरी शक्तियों के साथ ’’खरीदो, खरीदो’’ के मूलमंत्र के साथ पलक-पावड़े बिछा सजा सजाया सबको आमंत्रित कर रहा है । आद्युनिक मनोरंजन श्ेीवच.ेीवच जपसस लवन कतवचश् युवाओं को अपनी गिरफत में ले रहा है । पहले दीवाली परिवार के संग इक्टठे बैठ, घर के बने पकवानों का स्वाद लेने, पवित्र भाव से महालक्ष्मी जी की पूजा, मिट्टी के दीये जलाने,घर पर हर कोना साफ सुथरा करने, नये वस्त्र पहनने तथा पूरे विश्व में ’’अंधेरे से प्रकाश’’ की प्रार्थना से जुड़ा था । द्यर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के लक्ष्यों को जीवन में प्राप्त करने की प्ररेणा देने वाला यह पर्व आज केवल जीवन में अर्थ अर्जन तथा उपभोग केंद्रित हो गया है । दीवाली हिंदुओं में पहले से ही वैश्यों का त्यौहार - अर्थात व्यापारियों का माना जाता रहा है परन्तु बाजार इस कदर घर के दरवाजे तक क्या बैडरूम तक आ पहुंचा हैं । ई-कार्मस की प्रसिद्ध कम्पनियों जैसे अमेजान, फिलपकार्ट, अलीबाबा आदि ने तो बाजार को उपभोग पदार्थों तथा पूंजीगत सम्पतियों से पाट दिया हैं, खरीदों, डिस्कांउट पर खरीदों, नकद खरीदों, उधार पर खरीदों, किश्तों पर खरीदों बस खरीद लो । घर बैठे खरीदों । इसी प्रवृति को जरा उनके परिपेक्ष्य से देखों जो समाज का आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा, वंचित, निचला मध्यम वर्ग है, जोकि भारत है, इंडियां नहीं । कैसे मन मसौसे इस परिदृश्य को देखता व आंकता होगा । बड़ी-बड़ी अटलकिओं पर लटकी बिजली की लम्बी लम्बी कतारें, जगमग करती झालरे क्या बयान करती है । अमावस्या की रात का अंधेरा तो दूर करता है, पर एक गली का, न कि पूरे नगर का या पूरे राज्य का या पूरे देश का । उधार के इस प्रकाश ने कब किस में उत्साह, उमंग संचारित किया है । आओ आज इस पर्व में छिपे अर्थां को जाने, गुरूदेव रवींद्रनाथ टैगोर का नन्हा दीपक तो महाशक्तिशाली सूर्य को भी चुनौती देता है कि जब तुम नहीं होगे तो मैं यथाशक्ति जल कर तिमिर का नाश करुंगा। क्योंकि दीपक का स्वभाव ही प्रकाश देना है तथा अन्धेरे को दूर करना है । हम भी सब मिलकर, परिवार में समाज में, राज्य में, पूरे देश में, पूरे विश्व में, अपनी विश्वमानव की भूमिका में आ, ईश्वर प्रदत प्रतिमा तथा गुणों को विकसित करें, उन्हें तराशें तथा विश्व को बेहतर बनाने का प्रयास करें - जहां जोत से जोत जलाते हुए, प्रेम स्नेह की गंगा बहाते हुए, नव- निर्माण तथा नये युग का सूत्रपात करें । अन्त में हरि नारायण व्यास के शब्दों में ’’शब्दों की आवाज में खनकती सच्चाई, जो बच्चों में जवानों में, बूढ़ों में भरती है प्रेरणा, उसे सारे अस्तित्व में फैला सकूं ।
डा0 क कली