Dharam Karam
पर्व और अर्थशास्त्र
September 06, 2016 07:07 PM
पर्वों का जीवन में अपना महत्व है, परंतु वैश्वीकरण के चलते पर्व भी बाजारीकरण की भेंट चढ़ते जा रहे हैं। इसका ताजा उदाहरण गणेशोत्सव है। गणेश चतुर्थी को बाल गंगाधर तिलक ने स्वतंत्रता आंदोलन के संदर्भ में राष्ट्रीय महत्व का पर्व घोषित किया तथा इसे सार्वजनिक स्तर पर मनाने का चलन शुरू किया। अब यह केवल महाराष्ट्र में ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जा रहा है। चीन, जोकि कम्यूनिस्ट की विचारधारा वाला देश है, ने भी बाजार की ताकत पहचानते हुए पहले जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण जी के बाल गोपाल रूप की छोटी मूर्तियों को बाजार में उतारा, तो अब तरह-तरह के गणेश जी के खिलौनों से बाजार पाट दिया है।
पर्वों का भी अपना अर्थशास्त्र है। बाजार में गणेश जी का प्रिय खाद्य लड्डू-मोदक की मांग, पूजा कराने वाले पंडितों, कीर्तन करने वालों, ढोल-बाजे बजाने वालों की मांग तथा भाव दोनों बढ़ गए हैं। गणेश चतुर्थी का सांस्कृतिक तथा सामाजिक महत्व तो है ही, गणेश जी की कथाओं ने कला क्षेत्र तथा साहित्य क्षेत्र में भी विशिष्ट पहचान बनाई है। लेखक, कवि तथा साहित्यकारों के तो गणेश जी प्रिय देवता हैं, क्योंकि ये बल-बुद्धि के प्रदाता माने जाते हैं। महाभारत, जोकि सबसे बड़ा तथा गुह्य शास्त्र है। कहते हैं कि व्यास ऋषि ने इसे गणेश जी से लिपिबद्ध करवाया था। आज प्रबंधकीय सिद्धांतों को भी समझाने के लिये गणेश जी के विग्रह का प्रयोग किया जाता है तथा उसके सांकेतिक अर्थ में व्याख्या की जाती है। जैसे कि गणेश जी की छोटी-छोटी आंखें, बारीकी से अध्ययन तथा एकाग्रता को दर्शाती हैं। उनका बड़ा सिर, जीवन में बुद्धि के महत्व तथा बड़े कान ‘सुनो सबकी, करो मन की’ बात को प्रदर्शित करते हैं। उनकी लम्बी सूंड देख-परख कर कार्य करने तथा जीवन में लोचशीलता का महत्व दिखाती है। उनका बड़ा पेट, जिसके कारण उनका एक नाम लम्बोदर भी है, सब कुछ समा लेने की क्षमता को बताती है। उनके चार हाथ- जिसमें एक वरदहस्त मुद्रा में उठा हुआ है, वह सबके लिये शुभकामना-शुभ-भावना को, दूसरे हाथ में पाश तथा रस्सी ‘मंजिल पर पहुंचने के लिये साधन’, तीसरे हाथ में फरसा मोहपाश को काटने की प्रेरणा तथा चौथे हाथ में लड्डू प्रसन्नता अर्थात हर हाल में हर्षित रहने की प्रेरणा देता है। उनकी मूषक की सवारी जीवन में विनम्रता अर्थात सब कुछ होते हुए भी अकिंचन बने रहना सिखाता है। गणेश जी सर्वप्रिय देवता ही नहीं, प्रथम पूज्य भी हैं। हर अनुष्ठान का आरम्भ उनके स्मरण से शुरू किया जाता है। गृहस्थियों के लिये भी उनका परिवार अनुकरणीय है। उनकी पत्नियां रिद्धि-सिद्धि तथा पुत्र शुभ व लाभ उनको मंगलमूर्ति बनाते हैं, जिनके दर्शन मात्र से ही कल्याण होता है तथा विघ्न और संकट छूमंतर हो जाते हैं। सोशल मीडिया पर भी गणेश उत्सव पर शुभकामनाओं तथा संदेशों का आदान-प्रदान का तांता लगा हुआ है। वैश्वीकरण के चलते न केवल मनुष्य विश्वमानव की ओर अग्रसर है, अपितु हमारे देवता भी विश्वस्तर पर पूजे व उनके पर्व भूमण्डलीय ख्याति प्राप्त कर रहे हैं।
(डॉ० क० 'कली')